- ज्ञान और विद्या पर ऐसी बहस का रिवाज़ बन गया है जो सबके समझ में नहीं आती. इसलिए नहीं कि लोग कम पढ़े-लिखे हैं बल्कि इसलिए कि विश्वविद्यालय का तरीका ऐसा है कि विद्या की बातें सबकी समझ में न आयें. अगर एक न्यायसंगत दुनिया बननी है तो यह ज़रूरी है कि विद्या की बहस सबके समझ में आये और इतना ही नहीं बल्कि यह कि सब उस बहस में भागीदार हों.
- आम लोगों और समाज की प्रतिष्ठित धाराओं के बीच दार्शनिक संवाद का मैदान समतल हो यानि सभी को अपनी बात कहने का बराबर का अवसर हो इसके लिए आवश्यक है कि समाज में बसने वाले ज्ञान (लोकविद्या) और संगठित ज्ञान (विश्वविद्यालय) के बीच बराबरी, परस्पर सम्मान तथा मैत्री का सम्बन्ध हो.
- दर्शन अखाड़ा में ज्ञान के प्रकार, स्थान, निर्माण, संगठन, प्रबंधन, निजीकरण, नियंत्रण, शोषण और ज्ञान की मुक्ति जैसी बातों पर हम समकालीन सन्दर्भों में यहाँ चर्चा करेंगे.