निमंत्रण
देश की वर्तमान परिस्थिति और भविष्य
29 फरवरी-1मार्च 2020
विद्या आश्रम, वाराणसी
साथियों,
विद्या आश्रम ‘देश की वर्तमान परिस्थिति और भविष्य’ इस विषय पर एक वार्ता आयोजित करने जा रहा है. तारीखें होंगी 29 फरवरी और 1 मार्च 2020. आप इस वार्ता में भाग लेने के लिए आमंत्रित हैं. कृपया आयें और अपने विचारों तथा अनुभवों से वार्ता को समृद्ध बनायें.
आप अपने साथ अपने साथियों को भी लेकर आ सकते हैं. कृपया इसके लिए समय निकालें और आने–जाने के लिए आवश्यक संसाधनों का इंतजाम करें. आश्रम सभी के रहने–खाने का इंतजाम करेगा. हम लोग विद्या आश्रम, वाराणसी के सारनाथ परिसर में बैठेंगे. यहीं भोजन की व्यवस्था होगी और आस–पास ही रहने की व्यवस्था भी. वार्ता 29 फरवरी को सुबह 11.00 बजे शुरू होगी.
सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ संघर्ष इतने बढ़ जायेंगे इसकी उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी. और अब सरकार का रुख क्या होगा, ये संघर्ष किधर जायेंगे इसका अनुमान शायद किसी को नहीं है. फरवरी अंत में जब हम लोग बात करने बैठेंगे तब तक न जाने क्या–क्या हो चुका होगा. राष्ट्र को एक दो राहे पर खड़ा बताया जा रहा है, धर्म–निरपेक्षता या हिंदुत्व का रास्ता, वाम और दक्षिणपंथ का संघर्ष, उदारवादी और तानाशाहीपरक विचारों के बीच होड़ तथा लोकतांत्रिक या अधिनायकवादी व्यवस्थाओं के प्रति आग्रह के रूप में चर्चायें हैं, लेकिन यह एक जाल में फंसने जैसी बात नज़र आती है. क्योंकि इन मोटे तौर पर दो रास्तों में आपस में बड़ी समानतायें हैं. ज्ञान, विकास, और आर्थिकी के सवालों पर ये दो रास्ते एक दूसरे से बहुत भिन्न नहीं हैं. इसलिये सारी बहस इनके अंतर्गत सिमट जाये तो वर्तमान संघर्षों के आधारभूत बड़े और गहरे सवाल सामने नहीं आ पाते. व्यापक जनता बहस के बाहर हो जाती है और शासक वर्गों के बीच के अंतर्विरोध ही सारी बहस पर छा जाते हैं. विश्वविद्यालय परिसरों के छात्र–संघर्ष और खुले स्थानों पर होने वाले संघर्ष, राष्ट्र और राष्ट्रीयता के नये दावों के साथ आये हैं. इसके चलते राष्ट्र के विचार में और राष्ट्र निर्माण के तौर–तरीकों में नये विचार आयेंगे इसकी उम्मीद की जा सकती है. यह बुनियादी तौर पर एक नई परिस्थिति है.
सार्वजनिक स्थलों पर मुसलमान महिलाओं ने अपने धरनों के मार्फ़त अपना दर्द और वैचारिक स्पष्टता बड़े साहस, सब्र और कल्पनाशीलता से अभिव्यक्त की है. महिला नेतृत्व की नई मिसाल भी पेश की है. छात्र–छात्राओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं व कलाकारों ने अपने संघर्षों में बड़ी कल्पनाशीलता, वैचारिक स्पष्टता, हिम्मत और दर्द का परिचय दिया है. इन दोनों को थोडा ध्यान से एक साथ देखें तो वे केवल राष्ट्र ही नहीं बल्कि सभ्यता की एक नई किताब की प्रस्तावना लिखते नज़र आते हैं.
प्रस्तावित वार्ता किन्हीं भी वैचारिक बन्धनों से अपने को मुक्त रखेगी. लोग, सामान्य लोग, उनका ज्ञान और उनकी दुनिया को वार्ता में उचित व महत्वपूर्ण स्थान देने का प्रयास होगा. ‘ज्ञान की राजनीति’ और ‘लोक–राजनीति’ जैसे नाम ऐसे प्रयासों को दिए जा रहे है.
विद्या आश्रम,
सारनाथ, वाराणसी
Vidyaashram.org