9 फरवरी को रविदास जयंती है। रविदास जी के जन्म स्थान बनारस में इस दिन बहुत बड़े-बड़े उत्सव होते हैं। इस महान संत की स्मृति में उनके दर्शन पर चर्चा के लिए दर्शन अखाड़े पर 4 फरवरी को लगभग 30 व्यक्ति एकत्र हुये. संत रविदास जी के निम्नलिखित पद को चर्चा में रखा गया था. ज़ाहिर है चर्चा उसी तक सीमित नहीं रही.
नामहि पूजा कहाँ चढ़ाऊँ, फल अरु फूल अनुपम न पाऊँ l
दूधत बछरयो थनहु जुठारयो, पुहुप भँवर, जल मीन बिगारयो ll
मलयागिरि बांधियो भुजंगा, विष अमृत बसइ इक संगा l
मनहि पूजा, मनहि धूप, मनहि से सेऊँ सहज सरूप ll
तोडूं न पाती, पूजूं न देवा, सहज समाधि करूं हरी सेवा l
पूजा अरचा न जानूं तोरी, कह ‘रैदास’ कौन गति मोरी ll
राजकुमार के नेतृत्व में सरायमोहना गाँव की मंडली रविदास पद गाते हुए
वार्ता की शुरुआत राजकुमार के नेतृत्व में सरायमोहना गाँव की रविदास गायक मण्डली के सुन्दर भजनों से हुई. गुरु रविदास जन्मस्थान मंदिर, सीरगोबर्धनपुर, वाराणसी के आचार्य भारत भूषण दास ने संत रविदास के आध्यात्मिक दर्शन को विस्तार से रखा. मध्ययुगीन भारत के इतिहासकार डॉ. मोहम्मद आरिफ ने वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक विषमता के सन्दर्भ में संत रविदास के दर्शन के महत्व को अनेक उद्धरण और पदों का ज़िक्र करते हुए सामने लाया. ज्ञान की दुनिया में विश्वविद्यालय के दब-दबे को चुनौती देने में रविदास दर्शन का महत्व विद्या आश्रम की समन्वयक डॉ. चित्रा सहस्रबुद्धे ने अपने वक्तव्य में सामने रखा। सभा के सह अध्यक्ष सतीश कुमार उर्फ़ फगुनीराम-व्यवस्थापक संत रविदास मंदिर, राजघाट, ने वार्ता के लिए दिए गये पद में उजागर भाव को रस्मों का विरोध और ईश्वर से सीधे संबंध के रूप में व्याख्या की.
सुनील सहस्रबुद्धे ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि भारत की दार्शनिक परंपरा में संतों का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन चूंकि विश्वविद्यालय इसका अवमूल्यन करते हैं इसलिये दर्शन अखाड़े ने इसके न्यायोचित स्थान के लिए अभियान चलाया है.
समय अभाव के कारण गोष्ठी में आये व्यक्तियों में प्रेमलता सिंह, नूर फातमा, शीलम झा,एहसान अली, प्रवाल सिंह, महेंद्र प्रसाद, राजकुमार, लक्ष्मण प्रसाद जैसे कई ज्ञानी व्यक्तियों को बोलने का समय नहीं मिल पाया.
गोष्ठी के अंत में आमंत्रित वक्ताओं और गायक मंडली के सदस्यों को एक गमछा व साहित्य देकर सम्मानित किया गया. गोष्ठी के स्थान पर ही तिलमापुर के पंकज कुमार मौर्य ने वहां संत साहित्य की कुछ पुस्तकों को प्रदर्शन के लिए रखा.
आरती ने इस ज्ञान-वार्ता में आये सभी भागीदारों का स्वागत किया और दर्शन अखाड़े के व्यवस्थापक गोरखनाथ ने सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुये गोष्ठी का समापन किया और सभी ने जलपान किया.